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Friday, February 15, 2013

अफज़ल जल्लाद से अलविदा कह फांसी पर झूल गया : 'द हिन्दू'

एक  जेल अधिकारी ने नाम न
छापने की शर्त पर बताया कि
मकबूल बट और अफज़ल गुरु
में अंतर है। जहाँ बट एक अलगाववादी
नेता था वहीँ, अफज़ल ने कभी कश्मीर
को भारत से अलग करने की बात
नहीं की। वह हमें कहता था कि,
उसे बेवजह इस सब में घसीटा
गया है। असल में तो वह भारत को
भ्रष्टाचार मुक्त देखना चाहता था।
अंग्रेजी के 'द हिन्दू' अखबार में प्रकाशित एक खबर ने अफज़ल गुरु के बारे में एक ऐसे पहलू को सामने रखा है, जिसके बारे में अधिकाँश नहीं जानते हैं।

'द हिन्दू' के अनुसार, अलविदा! उसने फांसी देने वाले अपने जल्लाद से कहा। उसके कुछ सेकेण्ड बाद जल्लाद ने लीवर खींचा और अफज़ल गुरु फांसी पर झूल गया।

जेल सूत्रों के अनुसार, 'वह कुछ ही मिनटों में मर गया था, पर उसका शरीर पूरे आधे घंटे तक लटकाए रखा गया। उसके बाद उसे उतार लिया गया और इस्लामिक रवायतों के अनुसार जेल संख्या 3 के निकट कश्मीरी अलगाववादी मकबूल बट की कब्र के पास दफना दिया गया।' मकबूल बट को भी तिहाड़ जेल में ही फांसी दी गयी थी।

एक  जेल अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मकबूल बट और अफज़ल गुरु में अंतर है। जहाँ बट एक अलगाववादी नेता था वहीँ, अफज़ल ने कभी कश्मीर को भारत से अलग करने की बात नहीं की। वह हमें कहता था कि, उसे बेवजह इस सब में घसीटा गया है। असल में तो वह भारत को भ्रष्टाचार मुक्त देखना चाहता था।�
जब दक्षिणपंथी अफज़ल की फांसी की खबर पर देश भर में जश्न मना रहे थे, तब जेल में मातम का माहौल था। जेल स्टाफ ने बताया कि, �वह एक पवित्र आत्मा और बेहद अच्छे व्यवहार वाला व्यक्ति था। यहाँ तक कि, जब उसे फांसी के तख्ते तक ले जाया जा रहा था तो उसने जेल स्टाफ को उनके पहले नाम से संबोधित कर उनका अभिवादन किया। जब उससे उसकी आखिरी इच्छा पूछी गयी तो उसने केवल इतना ही कहा, कि मुझे उम्मीद है आप मुझे दर्द नहीं करोगे। जल्लाद ने उसे यकीन दिलाया जो उसका चेहरा ढंके जाने तक लगातार उसकी आँखों में देखते हुए खुद भी काफी भावुक हो गया था।�

मीडिया रिपोर्ट के उलट अफज़ल को उसकी फांसी के दिन सुबह ही यह खबर दी गयी थी, न कि पिछली शाम को।

�फांसी की सुबह उसने केवल एक कप चाय पी क्योंकि उसे खाना नहीं दिया गया था। वह काफी संतुलित और शांत था और दिए जाने पर खाना भी खा लेता।� उस सुबह वह कश्मीरी फिरन पहने था। जैसे ही उसे फांसी दिए जाने का पता चला, उसने नहाकर सफ़ेद कुरता-पायजामा पहना और नमाज़ अता की।
जेल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि, �तिहाड़ में अब तक 25 लोगों को फांसी दी जा चुकी है जिसमें से 10 के वे गवाह रहे हैं, पर फांसी दिए जाने की बात जानकर भी उन्होंने कभी किसी को इतना शांत और संतुलित नहीं देखा।�

अपनी ज़िन्दगी के आखिरी कुछ घंटे अफज़ल ने जेल अधिकारियों के साथ बिठाये और उन्हें जीवन-मृत्यु के बारे में अपने विचार बताये। उसने वैश्विक भाईचारे और एकता की बात की। उसने बताया कि, कोई इंसान बुरा नहीं है और हर इंसान एक ही भगवान का बनाया हुआ है। उसे विश्वास था कि, यदि आप सत्य की राह पर हैं तो सबसे सफल व्यक्ति हैं। इस समय अफज़ल इतना शांत था कि उसने अपने विचार एक कागज़ पर लिखे और उस पर दिनांक और समय डालकर हस्ताक्षर भी किये। जब एक जेल कर्मचारी ने उससे पूछा कि क्या उसने अपने परिवार के बारे में सोचा है, कि उसके बाद उनकी देखभाल कौन करेगा? अफज़ल ने कहा कि, अल्लाह ही अपने सब बन्दों की हिफाज़त करता है, वही उनकी भी करेगा।
एक अधिकारी ने बताया कि, �उसकी शक्ति उसकी आध्यात्मिकता से आयी थी। वह ज्ञानी आदमी था। वह इस्लाम और हिंदुत्व दोनों को अच्छी तरह जानता-समझता था। वह अक्सर हमें दोनों की समानताओं के बारे में बताया करता थ। कुछ समय पहले उसने चारों वेद पढ़े थे, कितने हिन्दुओं ने पढ़े हैं? हम अक्सर बुरे व्यक्ति के अंत पर ख़ुशी मनाते हैं, पर अच्छी आत्माएं अपने पीछे गम छोड़ जाती हैं। हमने आज तक फांसी के बारे में सुनकर थरथर कांपते लोगों को ही देखा था, लेकिन अफज़ल फांसी के तख्ते तक वैसे ही मुस्कराते हुए गया जैसा कि आज तक शहीदों के बारे में सुना था।� बाकी आतंकवादियों में अफज़ल में एक और अंतर बताते हुए अधिकारी ने बताया कि, लगभग सभी लोग भगवान का नाम लेते हुए या राजनैतिक नारे लगाते हुए फांसी चढ़े, लेकिन अफज़ल ने शांति से अपने सेल से लेकर तख्ते तक का १०० कदम का फासला तय किया और अपने आस-पास के सभी लोगों का अभिवादन किया। साभार: गौतम सन्देश

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